[ad_1]
-सीमा कुमारी
‘वासुदेव द्वादशी’ का वैट हर साल डेट्सी तिथि तिथि तिथि पर समाप्त हो जाता है। कृष्ण श्रीकृष्ण इस व्रत का सनातन धर्म में महत्वपूर्ण है। इस व्रत को ‘देवशयनी एकादशी’ के पिछले दिन पूरा होता है।
चाच है कि इस व्रत के साथ तुर्मास (चातुर्मास) प्रारंभ हो रहा है। और, ‘वासुदेव द्वाद’ के श्रीकृष्ण के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। सदियों जानें जानें ‘वाद्शी’ की तिथि तिथि, महिमा और पूजा-विधि के बारे में –
यह भी आगे
वासुदेव द्वादशी की तारीख
पंचांग के अनुसार, वासुदेव द्वादशी आषाढ़ की तारीख शुक्ल द्वादशी तिथि के दिन तिथि हो जाती है। यानि ‘देवशयनी एकादशी’ के बाद के दिन ‘वासु द्वादशी’ का देव व्यवस्था का विधान है। साल ‘वासुदेव द्शी’ 10 जुलाई, इस्वाद को रखा.
पूजा
वासुदेव वादशी के सुबह उठने के समय कर्म आदि से निवृत सुप्रसिद्ध श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। पूजा-अर्चना शुरू करें। पदार्थ में धूप-दीप, फल, फूल, अक्षत, दीपक और पंचम माता लक्ष्मी और श्रीकृष्ण को. पूजा के अंत में आरती करें। पूरे दिन व्रत। अंतिम समय के बाद. पूजा के बाद पूजा के दिन-दक्षिणा: भोजन करना।
‘वासुदेव द्वादशी व्रत’ की महिमा
योग के साथ धनदेव द्वादशी का व्रत, लक्ष्मी जी की पूजा के लिए, घर में वैभव का अभाव है। साथ ही, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। अपने शरीर के वातावरण पर व्यवहार करने की क्रिया में सहायक होता है। हैलैक्स निःसंतोष जैसे पुरुष कृष्ण कृष्ण की पहचान करते हैं, वे स्वस्थ पूजा करते हैं।
[ad_2]
Source link