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-सीमा कुमारी
सनातन धर्म में ‘मासिक कालाष्टमी’ (कालाष्टमी व्रत) व्रत का बड़ा महत्व है। यह तय होने के बाद हर दिन खराब हो जाता है। बार बार सावन (सावन) की ‘कालाष्टमी व्रत’ (कालाष्टमी व्रत) 20 जुलाई, गुरुवार को।
यह पावन तिथि समाप्ति तिथि है: काल भैरव शिव के एक रूप हैं। यह प्रबलता का प्रभाव है। इस दिन- व्यवस्था से भैरव की पूजा-अर्चना. काल भैरव की साधना में पूर्णतः सफलता नहीं मिलेगी। नियमित रूप से हर मनोवृत्ति में रहने के लिए। आइए ‘कालाष्टमी व्रत’ पूजा-विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त में।
शुभ मुहूर्त
गुरुवार, 20 नवंबर 2022
श्रवण, कृष्ण अष्टमी
20 नवंबर 07:35 – 21 जुलाई सुबह 08:11 बजे
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पूजा-विधि
. अतिरिक्त काल भैरव के साथ शिव और माता पार्वती की पूजा। भैरव को लहसुन या कुमाकुम का तिलक यमरती, पान कोनी जैसे आहार का भोग भोजन। अतिदीप्ति जलाकर आरती करें। शाम के समय काल भैरव के मंदिर धूप, दीपक जलाने के साथ कालीऊलाईड, सोम के तेल से पूजा के बाद भैरव चालीसा, शिव चालीसा का पाठ। इसके इसके ‘बटुक भैरव पंजीर कैशिंग’ का पाठ भी शुभ होगा।
महिमा
‘कालष्टमी’ के दिन भैरव की पूजा से सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। इस घटना के बाद ऐसा करने से शुभ फल की शुरुआत होती है I
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