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डिजिटल, दिल्ली। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत को तिथि तिथि तिथि तिथि तिथि निर्धारित है। इस दिन का दिन खराब होने पर प्रदोष व्रत। इस व्रत को वसन्त प्रदोष व्रत भी है। प्रदोष व्रत के दिन शिव शंकर की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाता है और उनकी जो भी मनोकामना होती है वह सब पूरी हो जाती है।
बार का प्रदोष व्रत सूर्य इस प्रदोष व्रत है। हिंदू धर्म में अपना सूर्य कीटाणु लगाने वाला होता है। इस बार प्रदोष व्रत से माता पार्वती, शिव के साथ – साथ सूर्य की कृपा प्राप्त होगी। माता पार्वती और शिव की कृपापात्र से वसीयत मित्तल में। इसी के साथ वहीं rach देव देव की की kay भक भक k सेहत सेहत सेहत अच अच अच अच अच अच अच अच अच अच अच
सूर्य प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तिथि 12 नवंबर की सुबह 3:23 बजे से 13 नवंबर को दोपहर 12:26 मेनेई। प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त 12 जून सुबह 7 से 9:30 बजे तक है। सूर्य प्रदोष व्रत के दिन शिव योग और सिद्ध योग का भी निर्माण हो रहे हैं। इन दो योगों के हिसाब से यह सही है। योग में सभी कार्य अति अति सूक्ष्मदर्शी हैं।
सूर्य प्रदोष व्रत पूजा पद्धति
सूर्य प्रदोष व्रत के दिन सूर्य देव को जल. जल अतिशीघ्र ओम् सूर्याय नमः का जाप अवश्य करें। प्रभामंडल को प्रदोष काल के समय शिव की पूजा करें। के अतिरिक्त ओम् नमः शिवाय मंत्र का जाप पूजा करें। अभिषेक शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। फिर से सरसों की खीर और फलों का सेवन करें। एडिटिंग शिवजी की आरती कर प्रसाद करें।
गो शिव का मंत्र
ओ नमः शिवाय
डिसक्लेमर- ये जानकारी अलग-अलग किताब और सुनाने के आधार पर दी गई है। भास्कर |
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