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नई दिल्ली। जहां एक तरफ भारत (भारत) में दूध (दूध) खरीदना वैसे ही महंगा हो रहा है और अब तो यह हैं कीमत जल्द ही इस समय के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच सकता है, आख़िर ऐसा क्या हुआ जिससे दुनिया के सबसे बड़े व्यवसायी भारत को आपूर्ति बढ़ाने और जीवन यापन के दबाव को कम करने के लिए आयात बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
पता हो कि, इस बार किसान एक दुर्लभ जुड़वां मार से जूझ रहे हैं। जहां एक तरफ एक घातक स्थिति गायों में किंकदार त्वचा रोग यानी लंपी वायरस और फिर डरपोक महामारी के जन्म को धीमा करने के बाद बाजार में तैयार कर्मचारियों के शेयर में गिरावट से दुग्ध उत्पादन में समस्या पैदा हो रही है।
ऐसे में जहां पिछले 12 महीनों में दूध की सेल पहले ही 15% से अधिक बढ़ा 56 रुपये प्रति लीटर हो चुकी है। जो कि ये एक दशक में सबसे तेज वृद्धि है। वहीं अब दूध और इससे बनने वाले अन्य फ्रेमवर्क के बढ़ते फैसले के इस साल के अंत में होने वाले राज्य चुनावों में एक राजनीतिक बनने की भी बड़ी उम्मीद है।
दरअसल साल 2022 में दायरे में उत्पादों के दावे में 39% की उछाल, फिर दूध की कम आपूर्ति के कारण, पहले से ही भारत मक्खन और स्किम्ड दूध पाउडर (एसएमपी) की आपूर्ति में कमी से जूझ रहा है। वहीं अब उद्योग जगत के अधिकारियों का आकलन है कि इस साल जिंदगियों की मांग में 7% की वृद्धि होगी। लेकिन सूत्रों के अनुसार सरकार राष्ट्रीय दायरे विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के वित्तीय वर्ष में मार्च 2023 तक दूध उत्पादन में केवल 1% की वृद्धि होने की संभावना है, जो कि पिछले एक दशक में 5.6% की औसत वार्षिक दर से भी कम है। हालांकि यह सिर्फ सूत्रीय खबर है कि जिम्मेदारी ‘नवभारत’ किसकी नहीं है।
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