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नई दिल्ली। एक बड़ी खबर के मुताबिक, समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में मोदी सरकार की तरफ से नए सुप्रीम कोर्ट (सुप्रीम कोर्ट) में हलफनामा पैर पसार चुका है। इसके साथ ही अब केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को इस मामले में पक्षकार बनाने की मांग की है। केंद्र ने यह भी कहा कि, यह चुनाव राज्यों के विधानसभा क्षेत्रों के भीतर आता है पहले उसे ही सुना जाना चाहिए।
अत्याचारी है कि, भारत में समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वालों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। वहीं चीफ़ जस्टिस डॉ। धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की भ्रष्टाचारी पांच जजों के संविधान पीठ ने आज याने बुधवार को याचिका पर सुनवाई की। इस चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि सुनवाई का दायरा सिविल यूनियन की अवधारणा को विकसित करने तक ही सीमित होगा, जिसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कानून में भी मान्यता प्राप्त है।
ये सिविल यूनियन क्या है?
मामले पर फाइंड लॉ वेबसाइट के अनुसार, सिविल यूनियन शादी नहीं है और न ही इसे धार्मिक मान्यता दी जाती है। लेकिन कानूनी मान्यताएं मान्यता देती हैं। इस तरह सिविल यूनियन दो लोगों के बीच एक लीगल रिलेशनशिप होती है। सिविल यूनियन के तहत दोनों लोगों को वो कई अधिकार नहीं मिलते जो आम विवाहित लोगों को ही मिलते हैं।बता दें कि इसे हर देश में मान्यता नहीं मिलती। समलैंगिक जोड़ों के एक साथ रहने का यह तरीका उन देशों में विकसित हुआ है जहां उनकी शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है।
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